लक्षय

खवाब है  बड़े - बड़े ,
लक्षय  भी  है  बड़े - बड़े,
इरादे भी  है  बड़े - बड़े,
दावे भी  है  बड़े - बड़े।

पथ पे चलते रहे,
पथ पे गतिमान रहे,
लक्ष्य सत्य प्रतित हो रहे,
कदम रुक पड़े, वायु के झोके से।

ईश्वर का ध्यान किए ,
महिमा का भखण किए,
शर्द्धा अर्पण किए ,
मानो, विपत्ति टल गए।

परिक्षा का वारी था,
अंतिम इम्तिहान आब भी जारी था,
धैर्य ख़त्म होने की बारी था,
पर, मस्तिष्क ही इम्तिहान में गैरहाजिर था।

धैर्य का बांध टूट गए,
दावे, दावे ही रह गए,
इरादे धरे के धरे रह गए,
खवाब थे बड़े - बड़े।

नैया फस गए बीच मझधार में,
ह्रदय हताश हो गया,
मन जबाब दे गया,
सबको छोड़ पलायन हो गया।

सोचा था, तुम भी थाम लोगे,
चल पड़ेंगे हम साथ - साथ,
जीवन की नैया पर,
दो पल जी लेंगे खुशहाली के।

खवाब, खवाब ही रह गए,
पूछा भी नहीं  क्या हुआ ?
उनने खबर न ली,
फस गए जीवन की किस लीला में !

उम्मीदों का जीना बुनता रहा,
ख़्वाब देखता ही रहा,
हृदय आस देखता रहा ,
वह अनजान और बयस्त रह  गया।

न फिक्र है हमारा,
जीवन के मायने बदल गए,
खवाब, खवाब ही रह गए,
अब भी अनजान ही रह गए,

ह्रदय बेजान पड़ गया,
मन पे काबू न रहा,
मस्तिष्क जबाब दे गया,
पता नहीं, मैं क्या कर गया ?

माँगा था, दो पल जिन्दगी के ,
चल पड़ूँगा जीवन की नैया पर,
जी लूंगा जीवन को,
अब उम्मीद न रही उस बेला की।

मेरी इच्छाएं उत्कृष्ट थी,
मेरे खवाब थे बड़े - बड़े,
मेरे इरादे थे फौलादी,
सब, खत्म हो गया।

सूर्योदय, अँधेरा टल गया,
सुबह की लालिमा फैल गयी ,
पशु - पंक्षी चहचहाने लगे,
नयी रौशनी दे गयी - आस नए जीवन की।

मैंने भी ठान लिया,
बनना है फौलादी,
पाना है अपने लक्षय को,
चल पड़ा - तू ही है मानव जिनमे से - मदर टेरेसा, सुभास , गांधी दिए
मैं भी उनका ही संतान हुँ।








  

No comments:

Powered by Blogger.