आदर्श का उत्कर्ष

शिक्षिकों ने पढ़ाया,
किताबो में पढ़ा,
सबने यही सिखाया,
लेकिन कल्पना मात्र,
आदर्श धरा का धरा रह गया ।

बचपन से सुनता आया,
गानो में गुनगुनाता रहा,
श्रधा के भाव पनपा,
लेकिन कल्पना मात्र,
आदर्श धरा का धरा रह गया ।

आदर्श के मूर्ति प्रतीत होते,
वादो के पक्के जन पड़ते,
उम्मीदो कि तसल्ली दे जाते,
लेकिन स्वपन  मात्र,
पर, सारी धरी ही जाती । 

दया के भाॉव दिखाते,
मानव प्रेमी जन पड़ते,
वायदे पे वायदे किये जाते,
पर दिखावा मात्र,
पर ये पतझड़ प्रतीत होते।

कहा गए वादे,
कहा गए मानव प्रेम,
कहा गए आदर्श कि बाते,
सिर्फ गानो में गया गया,
बस, बातो से बखान हुआ।

मेंरा मन  कह पड़ता काश ! अब में ठहर जाता !!!! 


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