यादे
गुमशुम, चुप चाप बैठा
न जाने क्या हो जाता
क्षिन्गुर बोल उठते
उपवन में आश जग जाता
जब भी मैं सोचता
कही सैर कर आऊ
पर न जाने क्या हो जाता
तभी चुपके से कोई दस्तक दे जाता
मन से एक टिस उठता
काश मैं एक बार भ्रमण कर आता
न जाने क्या हो जाता
क्षिन्गुर बोल उठते
उपवन में आश जग जाता
जब भी मैं सोचता
कही सैर कर आऊ
पर न जाने क्या हो जाता
तभी चुपके से कोई दस्तक दे जाता
मन से एक टिस उठता
काश मैं एक बार भ्रमण कर आता
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