यादे

गुमशुम, चुप चाप बैठा
न जाने क्या हो जाता
क्षिन्गुर बोल उठते
उपवन में आश जग जाता

जब भी मैं सोचता
कही सैर कर आऊ
पर न जाने क्या हो जाता
तभी चुपके से कोई दस्तक दे जाता

मन से एक टिस उठता
काश मैं एक बार भ्रमण कर आता


No comments:

Powered by Blogger.